थायराइड गर्दन में स्थित एक छोटी सी ग्रंथि होती है। तितली के आकार की इस ग्रंथि का मूल काम शरीर के पाचनतंत्र (मेटाबोलिज़्म) को नियंत्रित करना होता है। मेटाबोलिज़्म को नियंत्रित करने के लिए शरीर थायराइड हार्मोन बनाता है। यह हार्मोन शरीर की कोशिकाओं को निर्देशित करता है कि कितनी ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाना है। यदि थायराइड सही तरीके से काम करे तो शरीर के मेटाबोलिज़म के कार्य के लिए आवश्यक हार्मोन की सही मात्रा बनी रहेगी।
जैसे-जैसे हार्मोन का उपयोग होता रहता है, थायराइड उसकी जगह भरता रहता है। थायराइड रक्त की धारा में हार्मोन की मात्रा को पिट्यूटरी ग्रंथि को संचालित करके नियंत्रित करता है। जब मस्तिष्क के नीचे खोपड़ी के बीच में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि को यह पता चलता है कि थायराइड हार्मोन की कमी हुई है या उसकी मात्रा अधिक है तो वह अपने हार्मोन (टीएसएच) को समायोजित करता है और थायराइड को बताता है कि क्या करना है।
किसे होती है यह बीमारी
यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। महिलाओं में पुरुषों के अनुपात में यह बीमारी पांच से आठ गुणा अधिक होने की संभावना रहती है।
- थायराइड के निम्नलिखित संभावित लक्षण हैं:
- शारीरिक व मानसिक विकास का धीमा हो जाना।
- 12 से 14 साल के बच्चे की शारीरिक वृद्धि रुक जाती है।
- शरीर का वजन बढ़ने लगता है और शरीर में सूजन भी आ जाती है।
- सोचने व बोलने की क्रिया धीमी हो जाती है।
- शरीर का ताप कम हो जाता है, बाल झड़ने लगते हैं तथा गंजापन होने लगता है।
- हर समय थकावट महसूस होना।
- अक्सर और अधिक मासिक-धर्म होता है।
- स्मरणशक्ति कमजोर होना।
- त्वचा और बालों का सूखा और रूखा होना।
- कर्कश वाणी।
- सर्दी न सह नहीं पाना।
- चिड़-चिड़ापन या अधैर्यता।
- ठीक से नींद नहीं आना।
- थायराइड का बढ़ जाना।
- आंख की समस्या या आंख में जलन।
- गर्मी के प्रति संवेदनशीलता।
- शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है।
- उत्तेजना तथा घबराहट जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
- शरीर के वजन में असंतुलन पैदा होना।
- कई लोगों की हाथ-पैर की अंगुलियों में कम्पन उत्पन्न हो जाता है।
- मधुमेह रोग होने की प्रबल सम्भावना बन जाती है।
थायराइड में सूजन हो जाती है। इसमें सुई चुभने जैसा दर्द होता है। यह रंग में काला, छूने में खुरदरा तथा धीरे-धीरे से बढ़ने वाला होता है। यह कभी पक भी जाता है। इसमें रोगी का मुंह मुरझाया हुआ तथा गला और तालु सूखा रहता है।
थायराइड जहां पैदा होता है उस स्थान की खाल के रंग जैसा ही होता है। यह भारी, थोड़े दर्द वाला, छूने में ठंडा, आकार में बड़ा तथा ज्यादा खुजली वाला होता है।
मोटापे के कारण होने वाले थायराइड खुजली वाला, बदबूदार, पीले रंग की, छूने में मुलायम तथा बिना दर्द का होता है। इसकी जड़ पतली तथा ऊपर से मोटी होती है जो शरीर के घटने, बढ़ने के साथ ही घटता-बढ़ता रहता है। यह तुम्बी की तरह लटकता रहता है। इसके रोगी का मुंह तेल की लक्षण तरह चिकना होता है तथा उसके गले से हर समय घुर्र-घुर्र जैसी आवाज निकलती रहती है।
थायराइड जहां पैदा होता है उस स्थान की खाल के रंग जैसा ही होता है। यह भारी, थोड़े दर्द वाला, छूने में ठंडा, आकार में बड़ा तथा ज्यादा खुजली वाला होता है।
मोटापे के कारण होने वाले थायराइड खुजली वाला, बदबूदार, पीले रंग की, छूने में मुलायम तथा बिना दर्द का होता है। इसकी जड़ पतली तथा ऊपर से मोटी होती है जो शरीर के घटने, बढ़ने के साथ ही घटता-बढ़ता रहता है। यह तुम्बी की तरह लटकता रहता है। इसके रोगी का मुंह तेल की लक्षण तरह चिकना होता है तथा उसके गले से हर समय घुर्र-घुर्र जैसी आवाज निकलती रहती है।
यदि थायराइड की बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाती है तो लक्षण दिखाई देने से पहले इसके आयुर्वेदिक इलाज से यह ठीक हो सकता है। थायराइड जीवन भर रहता है। लेकिन इसके सही से रहने पर थाइराड से पीड़ित व्यक्ति अपना जीवन स्वस्थ और सामान्य रूप से जी सकता है। थायराइड का रोग अधिकतर आयोडीन की कमी से होता है। कभी-कभी थायरॉयड ग्रंथि के बढ़ने के कारण भी ऐसा होता है। इस रोग में गर्दन या ठोड़ी में छोटी या बड़ी तथा अचल अंडकोष जैसी सूजन लटकती है।
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